Sunday, July 15, 2012

ललकार ...


रामनाम जप ले  रे 
पगले 
पल भर में, पल
बीता जाये 
देर न लगा 
जगने में 
अब सूरज 
डूबा जाये 
जो रात हुई तो 
फिर से तू 
सोने की जिद्द लगाये?
इस निद्रा के 
चक्कर में 
दिन रात तू 
पिछड़ा जाये
कहीं ऐसा ना हो 
जब तेरी आँख खुले तो
तू खुद को 
अकेला पाये
और फिर 
सर अपना पकड़ कर 
रो रो पश्ताये 

अभी देर हुई नहीं 
क्यूँ ना तू 
फिर से साहस 
जुटाये
और दुनिया को 
दिखलाये 
तू शूरवीर 
आर्य पुत्र है 
जिससे सूरज भी 
शर्माये!



9 comments:

indu chhibber said...

bahut khub!

Anonymous said...

अभी देर हुई नहीं क्यूँ ना तू फिर से साहस जुटाये और दुनिया को दिखलाये तू शूरवीर आर्य पुत्र है जिससे सूरज भी शर्माये!
बहुत ही सुन्दर भाव,प्रभावशाली रचना ........

Unknown said...

Khoobsurat kavita :)

gurufrequent said...

@indu..thanks :)
@ghazala....thanks a lot :)
@others..thanks :)

Anupam Patra said...

Here’s something I want to give you. You deserve it.

Congrats !!!

Here it lies

http://anupampatracontemplates.blogspot.in/2012/07/morning-gift.html

gurufrequent said...

@Anupam....LOL :)
but thanks for gift it is nice :)

SarikaSingh said...
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SarikaSingh said...

Very nice attempt.
Last lines are really very inspiring
.

SarikaSingh said...
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