Saturday, September 8, 2012

सच्चाई

हे प्रिये! 
तू 
समझती है,
मैं, तुझे 
भूल गया हूँ!
पर,
चाहे, हूँ 
मैं मंदिर में
या फिर,कोई 
मस्जिद में, 
अधरों पे,
तेरा ही, 
नाम मेरे, अब 
रहता है!
सोता हूँ
तेरा 
नाम लेकर,  
जगने पर 
तू 
याद आती है!
तू 
सपना है,
सच्चाई है,
तुझसे 
जीवन का 
राग मेरे!
मैं तो 
अभी भी 
तेरा हूँ 
पर, तू
हो गयी 
परायी है! 

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Dedicated to "You" :)